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13 Jun 2024 · 2 min read

चुनाव के बाद अयोध्या

सामान्य तौर पर देखिए तो

अयोध्या में चुनाव बाद क्या बदला

कुछ भी तो नहीं।

बस एक नया जनप्रतिनिधि गया

उसकी जगह दूसरा आ गया,

पर इसमें खास क्या है कुछ भी तो नहीं।

यह तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।

चुनाव आते हैं, जातें हैं

चुनाव लड़ने वाले जनमत से ही पद पाते हैं

एक अकेला जीतता, बाकी सब हार जाते हैं।

कुछ दुखी तो कुछ प्रसन्न होते हैं

बस यही हुआ अयोध्या में।

लेकिन दोषी माने जा रहे अयोध्यावासी

बेवजह आरोपित हो रहे हैं,

एक की हार के लिए अयोध्यावासियों का

उपहास करने वाले अपने गिरेबां में क्यों नहीं झांकते हैं,

उपहास करने, आरोप लगाने वाले,

शायद लोकतंत्र का अर्थ नहीं जानते हैं।

अयोध्या का नाम लेकर

अप्रत्यक्ष रूप से रामजी को बदनाम करते हैं

खुद को बड़ा राम भक्त और लोकतंत्र के ठेकेदार समझते हैं,

जैसे भारत रत्न पाने जैसा काम करते हैं।

आखिर और अयोध्या में बदला क्या है?

श्रद्धालुओं का तांता आज भी

राम जी के दर्शन के लिए उमड़ रहा है,

सरयू आज भी अपनी लौ में बह रही है

सरयू में डुबकी लगाने का अटूट सिलसिला जारी है

रामनाम की गूंज आज भी कल जैसी ही सुनाई दे रही है।

मंदिरों में भजन, कीर्तन आरती हो रही है

घंटे घड़ियाल के स्वर भी तो नहीं बदलै हैं

वे बिना ठिठके आज भी कल की तरह ही तो बज रहे हैं,

मां सरयू की आरती अनवरत जारी है।

फिर अयोध्यावासियों पर आरोप क्यों लग रहे हैं?

लोकतंत्र में भला किसका कापीराइट है?

फिर किसी एक को, समूह, शहर अथवा क्षेत्र के

हर नागरिक पर लांछन लगाने का मतलब क्या है?

राम जी की आड़ में लोकतंत्र का अपमान करने

और बिना कुछ जाने समझे, सोचे विचारे

किसी का दिल दुखाने का मकसद क्या है?

चुनावी राजनीति और प्रभु राम अथवा राममंदिर का

तालमेल बिठाकर अनर्गल प्रलाप से मिलता क्या है?

कुछ भी नहीं ये सिर्फ चंद विकृति मानसिकता वालों का

समय पास कर चर्चा पाने का साधन मात्र है

जिसका लोकतंत्र, प्रभु राम, उनकी अयोध्या

और अयोध्यावासियों से कोई लगाव नहीं है।

क्योंकि चुनाव बाद भी अयोध्या में

आखिर कुछ भी तो नहीं बदला है,

सिवाय चंद बाहरी लोगों की मानसिकता के सिवा।

सुधीर श्रीवास्तव

गोण्डा, उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
2 Likes · 108 Views

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