*चुनाव की सत्यता*
चुनाव की सत्यता
चुनाव दुष्प्रचार आज होत जोर शोर से।
अजीब कर्म हो रहे मतैक्य हेतु जोर से।
लिहाज लोकलाज को भुला चुके सभी यहाँ।
न शर्म है न लाज है भले दिखें नहीं यहाँ।
कुचल हेय व्यंग्य वाण छोड़ता मनुष्य है।
न नीति है न भाव है विरोधजन्य नृत्य है।
रिझा रहे समस्त नेतृ आम ज़न समाज को।
असत्य बोल बोल झूठ दे रहे अनाज को।
न दिव्य भव्य सोच है न सभ्य लोक रीति है।
मरी हुई सड़ी गली विचार कुंद प्रीति है।
न लोकतंत्र का खयाल संविधान चूर है।
मनुष्य वोट माँगता चला स्वयं सुदूर है।
सत्य भाव है नहीं असत्य आज भूंकता।
चुनाव के प्रचार में समग्र शक्ति झोंकता।
हुआ अमूल्य लोकमत चुनाव के बजार में।
चला तुरन्त नेतृ शक्ति खोजते हजार में।
चले सदैव छल प्रपंच द्वंद्व आज लड़ रहा।
चुनाव दुष्प्रचार में मनुष्य अब अँकड़ रहा।
अशक्त शक्ति चाहता सदैव पूजनीय हो।
मिले उसे प्रभुत्व सत्त हर्ष वर्णनीय हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।