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4 Jul 2022 · 2 min read

*चुनाव की तैयारियाँ (लघुकथा)*

चुनाव की तैयारियाँ (लघुकथा)
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गड़बड़ दास जी का राजनीति में विशेष स्थान है। चुनाव लड़ते हैं और जीतते हैं। प्रभावशाली नेता हैं। इस बार भी चुनाव में खड़े हुए थे और भारी बहुमत से जीते थे।
कल जब मैं उनके घर पर उनसे मिलने के लिए गया तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि गड़बड़ दास जी अपनी आँखों पर गहरे काले रंग का चश्मा लगाए हुए थे । हाथ में छड़ी थी और उनका बड़ा लड़का उनकी बांह पकड़ कर उन्हें एक-एक कदम करके आंगन के इस कोने से उस कोने तक लेकर जा रहा था । हमेशा की तरह गड़बड़ दास जी सफेद ,प्रेस किया हुआ खादी का कुर्ता-पाजामा पहने हुए थे । मैं घबरा गया । दूर से ही चीखा “क्या बात हुई चाचा जी ! आपकी आँखों को , पैरों को और शरीर को क्या हो गया ? हमें तो कुछ पता ही नहीं चला ! ”
चौंक कर गड़बड़ दास जी और उनके बड़े बेटे ने पीछे मुड़कर हमारी तरफ देखा । बड़ा बेटा सहजता से कहने लगा “भैया ! हुआ कुछ नहीं है । कोई बात नहीं है। बस परसों होने वाले चुनाव की तैयारियां चल रही हैं।”
हमने कहा “हम कुछ समझे नहीं ? ”
इससे पहले कि बड़ा बेटा अपना मुंह एक – आध इंच और खोलता ,गड़बड़ दास जी ने आँखों से चश्मा हटाया ,छड़ी फेंकी और बेटे से कहा “चुप जा ! ”
अभी इतनी बातें चल ही रही थीं कि गड़बड़ दास जी का छोटा बेटा अपने दोनों हाथों से एक भारी-भरकम थैला उठाए हुए घर में प्रविष्ट हुआ और गड़बड़ दास जी से पूछने लगा “पिताजी ! थैले को कहाँ रख दूँ ?”
गड़बड़ दास जी ने उसे इशारे से घर के एक कमरे की अलमारी का पता बताया ।इसी क्रम में हुआ यह कि थैले का कपड़ा कमजोर था और उसमें रखा हुआ वजन भारी था । अतः छोटा बेटा जब थैले को हाथों में लेकर तेजी से निर्दिष्ट कमरे की तरफ चला तो थैला फट गया और उसमें से रुपयों की कुछ गड्डियाँ जमीन पर गिर पड़ीं। हम तो देखकर भौंचक्के रह गए । अरे ! यह तो नोटों की गड्डियाँ हैं !
गड़बड़ दास जी दौड़े । गड्डियाँ जमीन से हाथों में उठा लीं और थैले को सहारा देते हुए अपने पुत्र के साथ निर्दिष्ट कमरे की तरफ चले गए ।
बड़े बेटे ने कहा ” ! भैया क्या चाय पी कर जाएंगे ? ”
हमने कहा “नहीं ! आप अपनी तैयारियाँ कीजिए । ”
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
245 Views
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