चुनाव का परिणाम
.जब 23 मई को अंतिम परिणाम आया उसके पहिले ही सारा संसार इस बात से वाकिफ हो चुका था कि अब मोदी जी की भाजपा निर्विरोध सरकार बनाने वाली है। सब जगह इस बात को लेकर प्रतिक्रियाएं जारी की जारही थीं। और तो और बंगाल में उनके प्रदर्शन पर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा था। ममता जी ने माक्र्सवाद को पश्चिम बंगाल से ऐसा उखाड़ा कि आज उसका एक भी प्रतिनिधि संसद में नहीं पहुंचा। जब कि वह कभी सारी सीटे लेता था और उसके प्रतिनिधि अपने विचारों व संख्या के बल पर सरकार बनाने व गिराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। आज बंगाल में एक भी माक्र्सवादी या वामपंथी सांसद का न चुना जाना विचारों के केन्द्रीकरण की तरफ इशारा करता है जो एक तरह से लोकतंत्र पर खतरा भी हो सकता है। आशा की बात यही है कि इस तरह के परिवर्तनों से आगे लोकतंत्र मजबूत भी हो सकता है। वैचारिक संघर्षों के बाद ही जनता को सही व गलत में पहिचान करने का मौका मिलता है। इसलिए इस तरह के अवसरों की अगवानी करनी चाहिए।
भाजपा के लिए भी यह आश्चर्य जनक ही होगा कि जुम्मे -जुम्मे सात दिन पहले ही मध्यप्रदेश व राजस्थान में उसे जो मात मिली थी। वहां की जनता ने भूल कर भाजपा को खुशी -खुशी अपनाया वह भी इतना की कांग्रेस का नामोनिशान तक मिट गया। इतने खराब प्रदर्शन की आशा तो भाजपा को भी नहीं थी। अब देश की जनता की निगाह मोदीजी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार पर है और इनकी कार्यपद्धति तो जानी पहचानी ही रहेगी लेकिन हो सकता है कि गति बढ़ जाय।भाजपा ने एक कमाल यह भी किया कि पुराने सांसदों के टिकट जो काटे तो कहीं भी विरोध का स्वर नहीं उठा। सारे पार्टी के कार्यकर्ता एक नथ हो सरकार बनाने में लगे रहे। यहां तक की बड़े -बड़े पुराने नेता गण भी अपना आशीर्वाद देते देखे गये। आज उनके प्रयास को सफलता मिली है। उनका गद्गद् होना उचित ही है। मोदी जी के रूप में भाजपा को एक ऐसा नेता मिला है जो अटल जी की लोकप्रियता को आगे बढा रहा है और दुनिया में भारत व भाजपा के नाम को रोशन कर रहा है।
इस बार विरोध पक्ष भी अधिक संख्या में पहुंचा है । यह ठीक है कि बंगाल में सुपड़ा साफ है लेकिन तब भी काफी संख्या में ममता दीदी के सांसद है जो संसद की शोभा विपक्षी के रूप में बढ़ाएंगे। इसी प्रकार कांग्रेस व सपा के साथ ही इसबार बसपा के लोग भी उत्साहित है और संसद में सरकार के समझ अपना विरोध जोरदार ढ़ंग से रखना चाहेंगे। इस प्रकार पूरे देश के तौर पर देखा जाय तो विरोध का स्वर एक दम मौन नहीं है लेकिन मोदी आंधी तो है ही। इस प्रकार अब पांच साल तक सरकार के काम काज को जनता ने फिर से जागरूक होकर परखना है और समय पर उसके कार्य पर अपना मुहर लगाना है ।
विरोध विरोध के लिए नहीं मुद्दा पर हो और जनहित को ध्यान में रखकर हो तो यह बढ़िया होगा। जनहित व देशहित के समय में संसद एकजुट होकर अगर अपना संदेश देकर अगर मिसाल कायम करे तो यह उदाहरण आगे चलकर मार्गदर्शन करेगा।