चुनावी वायदे
आ गए चुनाव
हो गए बेमोल अनमोल
हो गई फिक्र बेफिक्रों को
जो शौहरत,दौलत,पद प्रतिष्ठा
और सत्ता के नशे में
चूर चूर और मशरूफ थे
आ गई अब गरीब,दुखियारों
बेरोजगारों की याद
देंगे लंबे लंबे ओजस्वी
और जोशीले भाषण
लगा देंगे वायदों की झड़ी
झूठ फरेब सानिध्य संग
आएंगे गली घर द्वार
जिनके निज घर द्वार
द्वारपालों एवं नसलदार कुत्तों के
पहरे में सदैव बंद रहते हैं
क्या करेंगे वो मददगार सुधार
जो करोडों में राजनीति की
ब्लैक में टिकट खरीदते हैं
आज वो जो बरसाती मेंढकों
की तरह टरटरार्ते हुए निकले हैं
वोट़ों रुपी बरसात की बूंदें पीने
घुस जाएंगे अपनी मांदों में
छिप जाएंगे आलिशान कोठियों में
पाँच साल करने के लिए
ऐशोआराम,सियासत,अयाय्शी
संचय करेंगे धन दौलत
जोड़ेंगे माया के खजाने
अपनी आने वाली कई
निक्कमी और बेपरवाह
पीढियों के लिए
रह जाएंगे बस राह ताकतें
वहीं गरीब ,दुखियारे,बेरोजगार
आत्महत्या को मजबूर किसान
भूखे पेट सोता लाचार मजदूर
हताश छोटा व्यापारी, काश्तकार
फिर करेंगे प्रतीक्षा चुनाव की
देश समाज आर्थिक सुधार की
सुखविंद्र सिंह मनसीरत