चुनावी बुखार
मलेरिया बुखार और चुनावी खुमार
दोनों का चढे समान तीव्र ताप ज्वर
पर ढले है ज्वरताप मंद मंद मद्धिम
अस्त होता हो भानु मंद मंद मद्धिम
मय का नशा उतरता है कालोपरांत
चुनावी नशा नहीं उतरे चढे दिन रात
चढा रंग उतर जाता है पानी के साथ
सियासी रंग रम जाए नस नस साथ
ईश्क और सियासत छोड़े ना छुटती
जितना दूर भागो पास आ है टकरती
ईश्क और सत्ता मत को है मार देती
रातों को है जगाती सोने भी नहीं देती
आँख लग जाए पहुँचाए कहीं ओर
जहाँ ना दिखाई दे अंबर धरती छोर
काल्पनिक स्वप्निल दुनिया में दे छोड़
जहाँ ना पीछे मुड़े,आगे बढने की होड़
सत्ता से रहोगे दूर रहोगे सदैव शान्त
सत्ता में गर जाओगे डूब रहोगे अशांत
अजब खेल होता है सत्ता गलियारों का
गजब नशा होता है सत्ता मयखानों का
सुखविंद्र सिंह मनसीरत