चुनावी जाल
चुनावी जाल
सियासी खेल के हर शख्स का राज़ मैं लिख दूँ
बदलते देश के हालात पर अल्फ़ाज़ मैं लिख दूँ।
कभी आया नहीं बरसों, कभी ना हाल ही पूछा,
अभी पैरों में गिरने का, नया अंदाज़ मैं लिख दूँ।
सियासत खेल सत्ता का, यहाँ कोई नहीं अपना
टिकट कटने पे नेता का नया आगाज़ मैं लिख दूँ।
लुभावन घोषणा वायदे, पुलिन्दा झूठ के लगते,
गँवाते वोट नोटों पर, वोटरों का आज़ मैं लिख दूँ।
चुनावी जाल में अक्सर, फँसा लेते हैं जनता को
बचा सकते “प्रियम” तो फिर, तुझे नाज़ मैं लिख दूँ।
©पंकज प्रियम
आज़-लोभ,लालच