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29 May 2024 · 1 min read

चुनावी खेल

जात पात का खेल है, चुनाव की यह चाल,
टूटती है इंसानियत, बाँटती है हर हाल।

नेताओं का भाषण, जुमले और रस्में,
कहते हैं हमें, बस वोट दो तुम हँसते।

जात का नाम लेकर, दिलों में लगाते छाला,
विकास की बात कहां, है बस नफरत का ज्वाला।

इंसान इंसान से, बनता है पराया,
जाति का चश्मा पहन, देखता सब साया।

हमें चाहिए समता, नहीं कोई दीवार,
इंसानियत के पुल बनें, दिलों का विस्तार।

जात पात को छोड़कर, बढ़ें हम आगे साथ,
चुनाव की इस बुराई को, करें हम सबका स्वार्थ।

चलो मिलकर गाएँ, नई सुबह की बात,
जहाँ न हो जाति की रेखा, हो बस प्रेम की रात।

सपनों का वह भारत, सबका हो जहाँ अधिकार,
जात पात की बुराई मिटे, यही हो हमारा संकल्प हर बार।

Language: Hindi
73 Views

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