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17 Aug 2017 · 1 min read

” ———————————-चुनरिया ना ढलकाओ ” !!

नयनों के कटोरों से , मद को नहीं छलकाओ !
राह चलते हम तो लुटे , और ना यों भरमाओ !!

बन्द होना पलकों का , क्या कोई शरारत है !
हम तो मर मिटे यों ही , थोड़ा तो रहम खाओ !!

यहां प्रेम धोखा है , सभी जानते है इसे !
मदिर मीठी बातों से , यों ही नहीं भरमाओ !!

अजनबी बन शरमाना , अदावत है या फितरत !
गुलों से नज़ाकत न लो , कहर ना यों बरपाओ !!

अधरों पर हंसी खेले , चेहरा तो गुलाब हुआ !
देहगंध है कपूरी , चुनरिया ना ढलकाओ !!

श्रृंगारित हुआ तन मन, दहलीज़ चढ़ उम्र की !
हमको दीवाना किया , और ना यों बल खाओ !!

शिकायत हमें है यही , हंसी बनी सौदाई !
गढ़ गढ़ कर किस्से कहे , ऐसे नहीं बहलाओ !!

बृज व्यास

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