” ———————————-चुनरिया ना ढलकाओ ” !!
नयनों के कटोरों से , मद को नहीं छलकाओ !
राह चलते हम तो लुटे , और ना यों भरमाओ !!
बन्द होना पलकों का , क्या कोई शरारत है !
हम तो मर मिटे यों ही , थोड़ा तो रहम खाओ !!
यहां प्रेम धोखा है , सभी जानते है इसे !
मदिर मीठी बातों से , यों ही नहीं भरमाओ !!
अजनबी बन शरमाना , अदावत है या फितरत !
गुलों से नज़ाकत न लो , कहर ना यों बरपाओ !!
अधरों पर हंसी खेले , चेहरा तो गुलाब हुआ !
देहगंध है कपूरी , चुनरिया ना ढलकाओ !!
श्रृंगारित हुआ तन मन, दहलीज़ चढ़ उम्र की !
हमको दीवाना किया , और ना यों बल खाओ !!
शिकायत हमें है यही , हंसी बनी सौदाई !
गढ़ गढ़ कर किस्से कहे , ऐसे नहीं बहलाओ !!
बृज व्यास