चीर हरण
महाभारत का द्रौपदी चीर ‘पांडव भी तो
उसी कुल का रक्त थे ,
लगा दिया दानव में एक ने
और जीत लिया दांव भाई ने ही तो
ढोंगी भीष्म , द्रोण और कृपा
सभी पुरुष श्रेष्ठ कहलाते थे
और एक पिशाच था कर्ण …..’
मित्र दुर्योधन का और वो दुशासन
सभी दोषी थे और आज भी हैं
यदि पुनर्जन्म होता है तो कहाँ है पांडव
निर्लज्ज
और दुष्ट की वो दानव लगाने की परम्परा
ह्ह्ह हर नियम स्त्री के लिए प्रतिबन्ध
वही खुद के लिए …….अधिकार है
भौतिक अभौतिक सभी पर स्वार्थी
दम्भी पुरुषों का एकाधिपत्य
नर की सहयोगी है नारी
लेकिन पौरुष दंभ पर भारी है नारी
भुला दिया वेदों में लिखने वाली
स्त्रियों को उनके योगदान को
फिर भ्रम फैलाया कि स्त्री को वेद्
छूने का अधिकार नहीं
ह्ह्ह क्या व्यंग है
सत्ता लोलुप पुरुषों का
हुआ सत्यानाश तभी समाज का
और आज हर पुरुष की आँखों एक
अहम् पुरुष होने का जिसने जन्म दिया
वो ? फिर क्या ? वो तो स्त्री है ?
वो भी शिशु युवा और वृद्ध होती
ठीक तुम्हारी तरह दम्भी पुरुष
सम्मान करना सीखिए
प्रतिकार भी जानती है नारी
मौत से भय नहीं सृजन करती है नारी
मरने की आदत है उसको
तुम्हें जवन का साज बहुत
ज्ञान अध्यात्म सबसे ऊपर वाणी
व्यव्हार कर्म आधार है वाणी
दृष्टि को बदल कर नीयत बदलना चाहिए
समय के साथ स्त्री का सम्मान सीखना चाहिए
तन का नहीं मन का भी बलात्कार रोकना चाहिए
जो करते हैं उन्हें समझना चाहिए