चीख-चीख कह रही धरा
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चीख-चीख कह रही धरा,
मुझको रखो हरा – भरा।
विनाश का बादल मंडरा रहा,
वृक्ष लगाओ ज्यादा से ज्यादा।
सारा वायुमंडल हो रहा है गर्म,
अब तो मानव करो कुछ शर्म।
कुछ तो समझो मानव जरा,
खत्म हो जायेगा अस्तित्व मेरा।
सोच कर बता फिर रहोगे कहाँ,
जब वातावरण ही ना रहेगा यहाँ।
ओजोन परत में हो गया है छेद,
बस कर अब प्रकृति से ना खेल।
प्रकृति को मत कर छिन्न-भिन्न,
मानव अस्तित्व पर लगेगा प्रश्न चिन्ह।
पेड़ों को ऐसे अंधाधुंध कटेगा।
फिर धरा पे तापमान बढ़ जायेगा।
तब तो मैं भी हो जाऊँगी नष्ट,
जन-जीवन हो जायेगा ध्वस्त।
इन्सान होगा कई रोगों से ग्रस्त,
तबाही विनाश से होगें सब त्रस्त।
समय रहते सम्हालो ऐ मानव,
मत बनो खुद अपना ही दानव।
जागरूकता फैलाओ जनजन में,
पेड़ लगाओ हर एक आँगन में।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺