चीखते चीखते कहा जैसे
चीखते चीखते कहा जैसे
मेरा मुझमें न कुछ रहा जैसे
सिसकियाँ दर्द की सुनी उसकी
तीर अन्दर कोई लगा जैसे
है जरूरत मुझे तेरी कितनी
आज महसूस ये हुआ जैसे
खामुशी शोर इतना करती है
घट गया कोई हादसा जैसे
ये कलम आज रो पड़ी ‘सागर’
दर्द अपना ही कुछ लिखा जैसे