चींटी रानी
चींटी रानी कहाँ चली
कहाँ चली बोलो कहाँ चली ?
बढ़ – बढ़ आँगन को जाती
फिर कहाँ गुम भी हो जाती
मैं देखा था तुझे मुंडेरे पै
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी
काली – लाली – मोटी – छोटी
मीठी – मीठी तुम्हें क्यों भाती ?
मैंने पीछा भी किया एक दिन धीरे – धीरे
अचानक मुझे भी चकमा दे गईं
फिर कहाँ तुम गुम हो चली ?
पता नहीं कहाँ तक जाती !
क्या ऐन्टिना से सन्देशा लाती !
किस – किस तक जा पहुँचाती
एक सीधी रेखा में जब चलती
न थकती न ठहरती न रुकती सदा
कितना काम भी तू करती है
हमेशा चलती रहती सदा
यह सब करके हमें भी
एकता सघर्ष का ज्ञान देती सदा