चिड़िया और जाल
चिड़िया खुद जाल में फँस गई शिकारी बस देखता रह गया,
नाव मँझधार में आकर डूब गई मांझी बस देखता रह गया I
कैसा दौर चल रहा है यह कभी हमने सोचा न था ?
इंसान-२ में इतना बड़ा फर्क का माहौल देखा न था ,
छोटे बड़ो के ऐसे दायरे का अंदाज कभी देखा न था ,
गाँव गली में अपने पराये का ऐसा खेल देखा न था I
चिड़िया खुद जाल में फँस गई शिकारी बस देखता रह गया,
नाव मँझधार में आकर डूब गई मांझी बस देखता रह गया I
भूख से लड़ते -२ आदमी जमीन से आसमान में गुम हो गया,
नौनिहालों का बचपन एक-२ रोटी के लिए कुर्बान हो गया,
उसके हाथ कुछ नहीं आया, भूखा था और भूखा ही रह गया,
बाग़ का माली बस केवल मुरझाते फूलों को देखता रह गया,
चिड़िया खुद जाल में फँस गई शिकारी बस देखता रह गया,
नाव मँझधार में आकर डूब गई मांझी बस देखता रह गया I
तड़पते बच्चे की दवा के लिए माँ को दर-२ भटकते देखा,
बहन-बेटियों को अपनी अस्मिता-लाज से लड़ते हुए देखा,
रंगीन कागज के टुकड़ों में इंसानियत को भी बिकते देखा,
दौलत के गरूर में आदमी को कई रूप बदलते हुए देखा I
चिड़िया खुद जाल में फँस गई शिकारी बस देखता रह गया,
नाव मँझधार में आकर डूब गई मांझी बस देखता रह गया I
जो आया है वो एक दिन इस जहाँ को छोड़कर चला जायेगा,
प्यार और नफरत की किताब यहीं पर रखकर चला जायेगा,
“राज” जाते-२ लेखनी से एक इबारत लिखकर चला जायेगा,
प्रेम दे प्रेम मिले दुःख दे दुःख मिले यह कहकर चला जायेगा I
चिड़िया खुद जाल में फँस गई शिकारी बस देखता रह गया,
नाव मँझधार में आकर डूब गई मांझी बस देखता रह गया I
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देशराज “ राज ”
कानपुर