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14 May 2018 · 1 min read

चिर पुरातन प्रेम

।। …. गीत …..

चिर- पुरातन प्रेम की नित
बह रही नव धवल धारा
थिर धरातल सुखद संगम
रूप सुन्दरतम् तुम्हारा
कोटि तारक अवनि अम्बर
शशि- कला रवि नृत्य वंदन
नाद सुर लय दिक्- दिगंतर
सूक्ष्मतम् अणु- चित्त बन्धन
चिर- प्रकृति संगीत जीवन
से प्रभावित जगत सारा
कामना की सरस कलियों
से खिला मम् हृदय- मधुबन
भावना की रागिनी फिर
गूँजती उर सजग कण- कण
चेतना की रश्मियों से
खिल उठा जग – जलज सारा
सृष्टि निर्मित जीव- जड़ से
किन्तु अभिनय विधि रचित है
जन्म जीवन मृत्यु सुख दुःख
हैं प्रयोजित शुचि निहित है
क्षरण सर्जन रीति कालिक
स्वत्व अभिनव प्रेम द्वारा

डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ

Language: Hindi
Tag: गीत
235 Views
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