चिराग को जला रोशनी में, हँसते हैं लोग यहाँ पर।
चिराग को जला रोशनी में, हँसते हैं लोग यहाँ पर।
जले स्वयं का फिर क्यों रोना, नीति दोगली कीचड़-सम।।
ख़ून दूसरों का चूस रहा, इंसान नहीं वह ‘प्रीतम’।
सत्य कहूँ मैं मत मान बुरा, वह है सच में चीचड़-सम।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’