चिराग-ए-दीप
” चिराग-ए-दीप”
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मैं तुझे !
तकलीफ नहीं देता !!
मगर !
तकलीफ मुझे भी है |
दिल से चाहता हूँ
तू खुश रहे सदा |
मगर !
मैंने कभी….
खुशी देखी ही नहीं !!
ना आए कभी
तेरी आँख में….
एक भी आँसू !
मगर !
बचपन का भीगा तकिया !
आज भी गीला है ||
मुझे गर्व है कि –
मैं तेरा पिता हूँ !
मगर !
नहीं जानता…..
प्रेम में पगा
साथ चलने वाला साया
पिता है !!
तेरी तरफ गुस्से में
देखकर भी डरता हूँ !
क्यों कि कोई घाव !!
मेरी पीठ पर…..
आज भी लगा है ||
वो प्यार जो तुझे देता हूँ !
वो तेरी ही अमानत है |
क्यों कि ?
तेरे जैसा प्यार
किसी ने नहीं दिया !
तू ही है !
जिसे एक पल न दिखूँ
तो रो देता है |
वरना मेरे लिए कभी
कौन रोया है ||
मेरे “ओज”……
तू “चिराग-ए-दीप” है !
और ओढ़े है……..
“मौज” का “आँचल” ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
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