चिराग़ उम्मीद का जलाया न होता,
चिराग़ उम्मीद का जलाया न होता,
मेरी आँख में आँसू आया न होता।
अगर न मिलती उनसे मेरी ये निगाहें,
दिल ने कोई ख़्वाब सजाया न होता।
मैं मान लेती कि वो बेवफ़ा है खुदगर्ज है,
उसने अगर मुझ पर हक़ जताया न होता।
मैं भी मिल जाती झूठों की टोली में,
इल्जाम मेरे सर पर आया न होता।
अगर दूसरों के ज़ज़्बात समझते वो भी,
किसी ने किसी का दिल दुखाया न होता।
जब बुलाया है तो महमानों की तरह आ,
या महफ़िल में तुझे बुलाया न होता।