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7 Sep 2018 · 1 min read

चित्त चंचल

चित्त चंचल,चित्तचोर चौधरी
शीतल रात,मंद,मृदु समीर
उठी झनक, झुरझुर शरीर
मन उमंग भादो का बेंग
सरक सरक कर रेंग रेंग
कर से टटोल,खोल करपाश
बड़ी आस,प्रिया की तलाश
कोशिश निःशब्द,किए पुरजोर
कांता क्यों विलग उस ओर ?
हिय हुलस हिलोर चौधरी।
अनुनय,विनय,मान-मनुहार
प्रिये वंदन,चंदन,हरसिंगार
कांता कठोर,पिघली न मोम
संशयी अब हुआ रोम रोम
भीत हृदय,बीत रही रजनी
उचट,हठ,क्यों रूठी सजनी?
कोमल काया,देखो कैसे तनी
ऊँघते, जगते,औंधी, अनमनी
रात पिघल कर भोर चौधरी।
साहस बटोर,गले को खराश
बोले मृदुवाणी, पुनरप्रयास
पर,एक बार जो भृकुटि तानी
सहस्रचंडीके,कलिका भवानी
कुपित पेशानी,अवरुद्ध वाणी
अब कौन जतन करे अज्ञानी।
चले न अब कोई जोर चौधरी।।
-©नवल किशोर सिंह

Language: Hindi
256 Views
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