चित्कार
इंसाफ के लिए तड़पती,चीत्कार
करती रूह की नहीं सुनते,
एक मजबुर मां के आंसू भी नहीं देखते,
कैसे है यह कानून के ठेकेदार ,
इन्हें हम इंसान नहीं कह सकते।
इंसाफ के लिए तड़पती,चीत्कार
करती रूह की नहीं सुनते,
एक मजबुर मां के आंसू भी नहीं देखते,
कैसे है यह कानून के ठेकेदार ,
इन्हें हम इंसान नहीं कह सकते।