चित्कार
जगत जननी नारी को
भगवान भी सर झुकाता है
मगर यह कलयुगी इंसान
क्यों नहीं नारी को पहचानता है,?
हर कदम पर दबाए इसे
आबरू को भी नोचता है
हवस का बनाए शिकार इसे
भगवान से भी नहीं डरता है,
लथपथ सनी पड़ी खून से
कोई इसे नहीं पोछता है,
खुद की बेटी लगे खूब प्यारी
दूसरों के बारे में नहीं सोचता है