*** ” चिड़िया : घोंसला अब बनाऊँ कहाँ….??? ” ***
***: बहुत ढूंढ़ी है मैंने…
आज कई ठीकाना ,
पर..
बन न पाया मेरा , कोई एक आशियाना ।
गांवों में….
न कोई मिट्टी-खपरैल वाली छत देखा ,
जंगलों में…
न कोई टहनियों वाली वृक्ष-तना देखा ।
बढ़ती घनी आबादी के…
ये घेरे… ,
उजड़ गए हैं आज…
मेरे रैन बसेरे ।
घोंसला अब….
मैं बनाऊँ कहाँ….?
अपने अरमानों को…
अब सजाऊँ कहाँ …?
बहुत दूर से लाया हूँ…..
यह कुछ तिनका ,
तू ही बता अब….
इसे बिछाऊँ कहाँ …..??
कल तक थी जहाँ….
मेरा आशियाना ,
वहाँ खड़ी है आज…
अनेक दीवार ।
कहीं पर खड़ी थी…..
एक-दो वयोवृद्ध वृक्ष तने , कल
उस पर भी हमने देखे हैं…
तेरे कुल्हाड़ी के वार-प्रहार ।
चिलचिलाती गर्म इन हवाओं के….
तपन में है आज कितना जोर ,
मचा हुआ है हर तरफ…
तपिश के कोहराम शोर ।
बहती तेज-तप्त हवाओं के हिलोर से…
टूट गये हैं आज…
निज आशाओं के सारे डोर ।
*** : अब घोंसला…
मैं बनाऊँ कहाँ…?
अपने अरमानों को….
आज सजाऊँ कहाँ …??
इन सुर्ख…
तपिश बयारों के जोर से ,
हो गए हम लाचार ।
विवशता में…
दिन ढल रहा है आज ,
कौन करे अब….,
हम पंछी से प्यार ।
हुई हैरान अब….
धरनी धरा आज ,
देखकर अपनी…
हृदय तल दरार ।
जब से कटी है…..
घने ओ जंगलों के घेरे ,
बिखर गए हैं…
गिलहरी भाई के कोटर ,
और अपने आशियाना डेरे ।
तुम पर…
है जो वातानुकूलित शीतल पवन के ,
मतवाले जोर ।
देख निज स्वार्थ मनुज…
हो गए आज हम ,
तेरे स्वार्थधंता के शिकार ;
हुआ तेरे कृत्य का ऐसा क़हर…
ओजोन परत में हो गई छिद्र ,
और हुए हम , घर से बे-घर ।
और भी कहने लगे…!
पितामह जटायु-संपाती भी….
सूर्य मंडल की स्पर्श चाह में ,
” पर ” अपनी..
इतना नहीं जलाया होगा ।
मामा हंसराज जी…
इतनी तपन की ,
कोई अनुमान नहीं लगाया होगा ।
हुई आज अगर…..!
किसी ” सीता ” की अपहरण ,
वह ” अशोक वाटिका ”
कहीं भी नहीं मिल पायेगा ।
सुनकर ब्यथा चिड़िया की…
भास्कर भी कहने लगे ,
मेरे किरणों की तरंग में…
इस तरह की कोई विनाश नहीं है ।
मेरे किरणों की ओज में…
पेड़-पौधे को भोजन (पर्णहरिम द्वारा)
और …
जीव-जंतुओं की जीवन शैली में…,
विकास ही विकास है ।
कटते जायेंगे….
सारे नीलगिरी और चंदन वन ,
फिर किसी…
” लाल ” का राज्याभिषेक भी ,
नहीं कर पायेगा ।
सारे जंगल काट खाया है तूने…
अपनी नव निर्माण में ,
चंदन वन बिखर गया है आज..
तस्करों की बाजार में ।
तू ही बता..! अब….
घोंसला मैं कहाँ बनाऊँ…..?
तूझे…
निर्मम् ‘ निशा ‘ की आगोश से ,
अब कैसे बचाऊँ…..??
तूझे…
तम् की चिरनिंद्रा से ,
अब कैसे जगाऊँ….???
और न कोई चाह है मेरी….!
सम्पूर्ण भू-मंडल की या
फिर तीनों लोकों की….
” वामन् विष्णु ” की तरह…!
केवल….!
एक डाली में…
मुझे पनाह दे दो ,
तुम एक पेड़ लगा के…
मेरे अरमानों को ,
एक उड़ान दे दो ।
ओ एक से अनेक हो जायेगा…
और
मेरे अरमानों में भी…,
चार चाँद लग जायेगा
तुम हरियाली के…
कुछ रंग वर्षा दो ,
धरनीं-धरा को…
अवनी-अंबर तुम बना दो ।
और…!
मेरे सपनों के घोंसले को सजा दो ।
मेरे सपनों के घोंसले को सजा दो ।।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )
२७ / ०९ / २०२०