“चिड़ियाॅं रानी”..
“चिड़ियॉं रानी”…
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चिड़ियॉं-रानी, चिड़ियॉं-रानी;
तुम हो सच में, बड़ी सयानी।
उड़ जाती, पल में आकाश;
ज्यों ही निकले, पूरब में प्रकाश।
पहुंच जाती, तुरंत मंजिल को:
दाना चुनती, हर दिन को।
फुर्र से ऊपर उड़ जाती तुम,
जैसे हो, खतरे का आभास।
घोंसला होता है , तेरा घर;
भटकती तुम डगर-डगर।
बच्चों की होती तुझे फिकर,
शाम से पहले वापस होती घर।
तू होती, कितनी भोली-भाली;
चूं-चूं , चूं-चूं होती तेरी बोली।
डरी-सहमी रहती , तू हमेशा;
आखिर तू, किसपर करे भरोसा।
.. …✍️
स्वरचित सह मौलिक
पंकज कर्ण
कटिहार।
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