चिट्ठी
है बड़ा
आत्मनीय शब्द
खत
दरवाजे पर खड़ी
बाला
इन्जार करती
माँ
खत नहीं तो
दिखता नहीं
कोई यहाँ वहाँ
सुकड़ गया है
आज संसार
सुकड़ गये हैं
आज संबंध
पिता जी
की नसीहत
माँ का
दुलार
बहन की
राखी
भाई का
उपहार
हो गये हैं
आज बीते
दिनों की बातें
बात होती है
आज
डिजिटल की
खत डाकिया
साईकिल
हो गयी है
आज बीते
ज़माने की
नहीं भूलेगी
पुरानी पीढ़ी
चिट्ठी खत
पत्र को
जन्म नौकरी
शादी तक का
तय किया है
सफर
इस खत ने
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल