चिट्ठी का जमाना और अध्यापक
एक हास्य व्यंग्य
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डाकघर और चिट्ठी कालीन समय में.
दो चार पांच गावों एकाध पढ़े लिखा व्यक्ति मिला करते थे.
चिट्ठी लिखना और पढना,
एक मुश्किल भरा दौर था,
*
एक दिन हंस ने एक अध्यापक के घर जाकर चिट्ठी लिखने का आग्रह किया,
मास्टर जी,
एक चारपाई पर बैठे हुए थे,
और विश्राम फरमा रहे थे,
उनके पैर में चोट लगी हुई थी,
*
वह हंस को देखकर ठिनक गया,
और बहाना बनाकर चिट्ठी न लिखने का मन बना लिया,
*
हंस ने मास्टर जी से दुआ सलाम किया और नीचे बैठ गया,
तब ही मास्टर जी ने दुखी मन से पूछा,
हंस बताओ,
कैसे आना हुआ,
*
हंस ने कहा,
मास्टर जी एक चिट्ठी लिखवानी है,
अब मास्टर जी ने कहा,
मेरे पैर में तकलीफ है.
चिट्ठी नहीं लिख सकता.
*
हंस तो हंस ठहरा,
कहने लगा,
चिट्ठी तो हाथ से लिखनी है.
पैर से नहीं,
मास्टर जी झुंझलाहट में कुछ ज्यादा ही स्पष्ट उत्तर दे गये.
*
कहने लगा,
तुम्हें मालूम ही नहीं है,
पहले चिट्ठी लिखनी पड़ती है,
फिर वहां जाकर पढ़कर,
सुनानी भी तो पड़ती है,
*
हंस मास्टर जी नजाकत,
समझ चुका था,
कहने लगा,
फिर तो मुझे
ये काम निमंत्रण देने वाले से ही करवा लेना चाहिए.
*
हुनर पर नजाकत तो आ ही जाती है.