चिट्ठियां जो तुम्हे भेजनी थी खो गईं हैं कहीं
__चिट्ठियां जो तुम्हे भेजनी थी वो खों गईं__
© अनुराग अंजान
चिट्ठी जो तुम्हे भेजनी थी वो खो गई
मेरी पसंद ,मेरा इंतजार लिखा होता था,
शब्दों के हेर फेर से इजहार होता था।
जो तेरी नज़रों में था मेरा गुनाह शायद,
वो प्यार का पैग़ाम लिखा होता था।
जो ले जाती थी उसकी सहेलियां
बुझाते हुए उसे रास्ते भर पहेलियां।
करके जिक्र बातों का उसमें से
रास्ते भर करती थी अठखेलियां।
मिलना होता था जिन गलियों में
उनका नाम और पता होता था।
चोरी,चुपके, समय से ही आना,
ये इसरार लिखा होता था।।
लिखा होता था सोच कर उत्तर देना
और इंतजार फिर बेशुमार होता था।
उनकी आंखों को चंचल कटार कहकर,
ग़ज़ल का अश’आर लिखा होता था।
जिनमे तुम्हारा जिक्र हुआ करता था,
ना चाहकर भी थोड़ा फिक्र हुआ करता था।
लिखे होते थे उन पर जज़्बात मेरे बेशक,
कागज़ों को भी तुम्हारा फिक्र हुआ करता था।