चिट्ठियाँ
***** चिट्ठियाँ (ग़ज़ल) *****
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हाथ लग गई पुरानी चिट्ठियाँ।
जान से बहुत दुलारी चिट्ठियाँ।
शाम को मिली गिरी थी कहीं से,
स्वर्ण सी लगी सुनहरी चिट्ठियाँ।
यार प्यार में रुठे जब कभी भी,
खून से लिखी निराली चिट्ठियाँ।
थी रखी कहीं छिपाकर नजर से,
जान आखिरी निशानी चिट्ठियाँ।
मानता उसे सदा जान सीरत,
रूह से भरी रुहानी चिट्ठियाँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)