चिंता – चिंतन
विचार मेरे मन में अंतर्नाद करते हुए
चिंता पशोपेश का विवाद भरते हुए
कभी चोट करते,कभी प्रहार भारी
कभी एकत्र करते चिन्ता सारी हमारी
कुछ प्राथमिक, कुछ दैनिक ,तो कुछ सैनिक
कुछ देश की रक्षा हित
कुछ सर्वहित समाहित
चिंताओं का अंतर्द्वंद करता प्रश्न विशाल बड़ा
चिंतित मन हमारा सामने दोराहा खड़ा
एक राह आत्महित बतलाती
दूजी जगकल्याण है सिखलाती
चिंता में उल्झा, चिंतन में भटका
हमारा मन
भयंकर अंतर्द्वंद
जगकल्याण चुना इसमें भी चिंता बड़ी
अपनों को भूल रही
फिर दो राह पे खड़ी।
आया विचार,नव ज्योति संचार
कुछ सपने पूरे ,करूँ अधूरे
जो अपने छूटे सब साथ मिलेंगें।
धरा गोल फिर वहीँ आएंगे
जो छूट गए सब हाँथ मिलेंगें।
शांत अंतर्द्वंद भयंकर आज हुआ,
तनिक सपन पूरा कुछ काज हुआ।।
फिर भी छिड़ रहा अंतर्नाद है
पहले से नवीन दीर्घ नाद है
चिंता , चिंतन में उल्झा
मन हुआ अज्ञेयवाद है।
भयंकर अंतर्द्वंद अंतर्नाद है।।