चिंता और चिता
सोचूं मैं चिता से चिंता भली या चिंता से चिता
ना तो ये जाने है ज़माना ना ही मुझको है पता
चिंता आए बिना बुलाए सुनो कड़वी है सच्चाई
चिता तक तुझको ले जाएंगे लेटा अर्थी पे भाई
चिंता आती जब जीवन में तन-मन दोनों खाए
चिंतन करे कोई जितना भी जतन कोई ना पाए
चिंता मिटाए ना मिटे पर मिट जाता है ये शरीर
चिंता चिता तक पहुंचाती है राजा हो या फकीर
चिंता सोचूं ना करूं मगर ये फिर भी होती रोज
जतन कोई मिल जाए अरे करो भई कोई खोज
“विनोद”चिंता का मारा पर चिता से अब तक दूर
रखो हौंसला तो राह मिले मैंने सीख लिया दस्तूर