चिंतन
सुबह सूर्य का रूप निहारो
कुछ ऊर्जा अपने पर डारो
ब्रह्म मुहूर्त अमृत की बेला
उड़ता पंछी जाए अकेला
पंख हवा की गति पर निर्भर
कुछ पाने का है यह अवसर
शांत चित्त हो बैठ विचारो
कुछ ऊर्जा अपने पर डारो
बहता जाए कल कल पानी
गतिमयता ही उसने जानी
जलधारा पर बहता दीप
एक पुष्प आ गया समीप
मन आँगन को बैठ बुहारो
कुछ ऊर्जा अपने पर डारो
धूप गुनगुनी स्वर्णिम होती
इसमें एक चमकता मोती
सीपी में अब सूनापन है
रहा कहाँ सब अपनापन है
अन्तस् आभा और निखारो
कुछ ऊर्जा अपने पर डारो