चिंतन मनन कर रहा हूँ
अपनी जिंदगी का सृजन कर रहा हूँ।
कि अब मैं चिंतन- मनन कर रहा हूँ।
कभी सबका जतन कर रहा था मैं,
अब बस खुद का जतन कर रहा हूँ।
अपनी जिंदगी का सृजन कर रहा हूँ।
कि अब मैं चिंतन- मनन कर रहा हूँ।
अब मैं अपना समर्थन कर रहा हूँ।
थोड़ा पूजा व अर्चन कर रहा हूँ।
खो गया था दुनिया के भ्रम जाल में,
सारे भ्रमों का विसर्जन कर रहा हूँ।
अपनी जिंदगी का सृजन कर रहा हूँ।
कि अब मैं चिंतन- मनन कर रहा हूँ।
अब खुद के अंदर भ्रमण कर रहा हूँ।
यदा – कदा राधा रमण कर रहा हूँ।
खुद को भूल जाऊँ न कहीं इसके
ख़ातिर,
खुद के सामने दर्पण कर रहा हूँ।
अपनी जिंदगी का सृजन कर रहा हूँ।
कि अब मैं चिंतन- मनन कर रहा हूँ।
वाह रे हम से !उत्साह वर्धन कर रहा हूँ।
बेहतरीन यादों का संवर्धन कर रहा हूँ।
‘परिवर्तन ही संसार का नियम है’ ये पढ़ा था कभी,
अपनी आदतों में थोड़ा परिवर्तन कर रहा हूँ।
अपनी जिंदगी का सृजन कर रहा हूँ।
कि अब मैं चिंतन- मनन कर रहा हूँ।
-नमिक सिद्धार्थ