चिंतन करत मन भाग्य का
करत करत चिंता सदा
पहुंचा चिता के पास।
दूर नहीं तृष्णा हुई
पूजी न मन की आस।।
आज किनारे पहुंचा जो
देख अतीत की ओर।
बंजर सारे खेत रह गए
सगरो चारिउ ओर।।
समय से मेहनत जो किया
फसल दमकती होय।
परीवार संग और के भी
पेट भरिन तो होय।।
भाग्य भरोसे रह गया
कियो न कोई काज।
कैसे पार को जाऊंगा
ले कागज की नाव।।
आज समझ आया मुझे
निज दुःख कारन आप।
मेहनत से ही दुःख कटे
कटे किये ना जाप।।
एक परिश्रम रास्ता
दूजी राह न कोय।
सारथक श्रम जो किये
ऋतू में ही फल होय।।
दूजे का सुनते रहो
करो आपनो जोग।
निर्मेष आपनो कर्म से
ही भला तुम्हारो होय।।
निर्मेष