चिंतन और अनुप्रिया
दिन की शुरुआत में चिन्तन जहां बेहद खुश था वही शाम होते होते एक अजीब सी बैचेनी उसके मन पर हावी हो रही थी हो भी क्यो ना वो पहली बार एक ऐसी पहेली में उलझा था मस्त रहने वाला बिंदास बाते कहने वाला चिन्तन आज शाम को अपनी सबसे प्यारी दोस्त को दिल की बात जो कहने वाला था उसकी दोस्त वही है जो उसे बात बात पर समझाती है ना सुनने पर झगड़ा करती है कभी खुद रोती है तो चिन्तन से बात करती ओर चिन्तन उसे समझाता भी देता था लेकिन आज बात चिन्तन के दिल की बात थी कैसे कहे क्या कहे इससे पहले कभी किसी को कहा भी नही था उसकी इस प्यारी सी दोस्त को वो खोना भी नही चाहता तो एक उलझन सी ओर बढ़ती ही चली जा रही थी इस उलझन इस पहेली ओर इन सब बातो के बीच डाक्टर का चिन्तन से मिलना ओर यह कहना की अब तुम अकेले रहने की आदत डाल उसे ओर बैचेन कर गया चिन्तन से रहा नही गया डाक्टर से उसने पुछा उसकी दोस्त को क्या हुआ है डाक्टर ने कहा वो कुछ दिनो की मेहमान है उसे ब्रैन ट्यूमर है लास्ट स्टेज जितनी सहजता से डाक्टर ने चिन्तन को कहा उतनी ही कठिनता से चिन्तन को समझने में देरी लगी !
शाम को जब दोनो क्लीनिक से निकले तो हल्की हवा थी ओर बारिश की रिमझिम शुरू होने ही वाली थी यह देख दोनो बस स्टैंड जहा से अक्सर दोनो कालेज के लिए जाते है खडे हो गये दोनो बातो बातो में अपनी पुरानी यादो के गलियारे में पहुच गये ओर उन्ही बातो शिखा का जिक्र निकला शिखा कालेज की वो लडकी जो हंसमुख मिलनसार ओर दोस्त की दोस्त थी सभी शिक्षको की चहेती वो उन दिनो भी योगा की कक्षा अटेंड करती थी ओर योग मे ही उसने अपनी पढाई भी की थी शहर से दूर उसके गावं चन्दनपुर में है आज कल वो दोनो की बातो में यह सब बाते हो ही रही थी कि चिन्तन ने कहा हम चन्दनपुर चलते है कुछ दिनो के लिए उसकी दोस्त ने चिन्तन की टांग खिचते हुए कहा हा चंदनपुर शिखा क्या बाते है चिन्तन ने कहा चलते है उसकी दोस्त ने कहा ठीक है चलेगे फिर कभी चिन्तन ने जिद की हम कल चलते है जाने की बात को लेकर उसकी दोस्त ने कहा तुम शुरू से ही जिद्दी हो मानोगे तो हो नही ना कहूँगी तो मु फूला के बैठ जाओगे ठीक है कल चलते है !
दूसरे दिन सुबह 9.40 को दोनो चन्दनपुर के लिए ट्रेन में सफर करते हुए दौलतपुर पहुँच फिर वहा से एक घोड़ा गाडी कर चन्दनपुर जो की दोलतपुर से 2 किलोमीटर था पहुँचे अपनी दोस्त शिखा को दोनो ने सरप्राइज किया! उनके घर पहुंच ने से शिखा भी दोनो को देख सरप्राइज हो गई दोनो को अपनी कोठी पर रहने को कहा बातो मे दिन कब बीत गया रात में तीनो ने खाना खाया खाने के समय भी बीती हुई बाते खत्म ही नही हो रही थी खाना खाने के बाद तीनो छत टहल के लिए जाते है टहलते वक्त शिखा ओर चिन्तन टहलते रहे लेकिन चिन्तन की दोस्त ने कहा बाबा मुझे नींद आ रही में तो चली सोने चिन्तन की दोस्त सोने को नीचे चली जाती है लेकिन चिन्तन ओर शिखा थोडी देर के लिए छत पर ही टहलने के लिए रूक जाते है ओर बातो के पुराने गलियारे से चिन्तन वापस आते हुए शिखा को पूरी बात बता देता है की यहा आने का उसका उद्देश्य क्या है डाक्टर ने उसे क्या कहा ओर उसकी दोस्त को ब्रैन ट्यूमर है सब कुछ बता दिया ओर यह कहा की अब शिखा तुम मेरी आखरी उम्मीद हो तुम ने योग के माध्यम से अनसुलझे केस को भी ठीक किया है क्या तुम मेरी मदद करोगी मेरी दोस्त को ठीक करने में चिन्तन की सारी बाते सुन शिखा ने नम आंखों से कहा चिन्तन हम कितने लक्की है जो हम दोस्त है मै अपना 100 प्रतिशत दूंगी दूसरे दिन की सुबह चिन्तन शिखा ओर उसकी दोस्त योग साधना केन्द्र पहुंच वहा ऐसे रोगो को ठीक करने का वर्षो पुरानी पद्धति के माध्यम से ठीक करने का चिन्तक ने सुना भी था उसी विश्वास के साथ गुरू के सान्निध्य में रहकर योग साधना के माध्यम से अनुप्रिया (चिन्तन की दोस्त ) का इलाज शुरू हुआ दोस्त का साथ देने के लिए चिन्तन ने भी योग कक्षा ज्वाइन कर ली थी ओर वही उसी के साथ रहने लगा देखते देखते कब एक महीना गुजर गया पता ही नहीं चला इस एक महीने में अनुप्रिया की हालत में आंशिक सुधार हुआ धीरे-धीरे वक्त का पहिया चलता गया अनुप्रिया की हालत में ओर सुधार आता गया लेकिन बीच बीच में अनुप्रिया की हालत को देख चिन्तन डर जाता था लेकिन कभी भी उसने अनुप्रिया को अकेला नही छोड़ा देखते देखते समय बीतता गया एक दिन अनुप्रिया ने चिन्तन की आंखों में अपने प्रति एक जिम्मेदारी एक विश्वास एक अपनेपन की भावना देख चिन्तन से कहा चिन्तन कभी मुझे कुछ हो गया यह कहते ही चिन्तन ने कहा ऐसा कभी नही होगा अनुप्रिया हंसने लगी ओर चिन्तन को कहा चिन्तन मेरी एक इच्छा पुरी करोगे …
क्या चिन्तन अपने दिल की बात कह पाएगा क्या वह अपनी दोस्त के सपने को पूरी कर पाऐगा क्या वह अपनी दोस्त की जिन्दगी बचा पाएगा जानने के लिए कहानी का अगला हिस्सा देखे क्रमश …
लेखक -सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)