#चिंतनीय
#चिंतनीय
#यह_हाल_है_साहब…!
■ ऐसे होगा तो कैसे होगा न्याय…..?
【प्रणय प्रभात】
★ अपराधी की मौखिक स्वीकारोक्ति को न्यायालय में मान्यता नहीं।
★ 14 दिन से अधिक की रिमांड देने में अनुचित आनाकानी।
★ पुलिस को पूछताछ के दौरान सख़्ती बरतने की छूट नहीं।
★ अपराधी को शातिराना पैंतरेबाज़ी और गुमराह करने की छूट।
★ नार्को, ब्रेन मैपिंग, लाई डिटेक्टर जैसे वैज्ञानिक टेस्ट मान्य नहीं।
★ उक्त टेस्ट के लिए आरोपी की अनुमति की अनिवार्यता।
★ अपराधी विश्वसनीय, विवेचक व जांच एजेंसियां अविश्वसनीय।
★ दानवता के प्रतीकों के लिए मानवाधिकार का अभेद्य कवच।
★ और अब लेट-लतीफ़ “न्याय” के नीचे दब कर कसमसाती त्वरित “दंड” की आस।।
मतलब, न्याय की राह में तमाम रोड़े। तथाकथित क्रांतिकारी बदलावों की डुग्गी ज़ोर-शोर से पीटे जाने के बाद भी। अपराधी को बच निकलने की समुचित छूट। ससम्मान रिहा होते रहेंगे दरिंदे। बैकफुट पर रहेगी पुलिस, फ्रंटफुट पर खेलते रहेंगे भेड़िये। अगर ऐसे होगा तो आख़िर कैसे होगा न्याय….?
मिलकर सोचें क़ानून विशेषज्ञ व सम्मानित न्यायविद। ताकि मख़ौल साबित न हो न्यायिक प्रक्रिया और अनापेक्षित निर्णय। जो दानवता के पक्ष में मानवता के पैरोकार हों और चिंगारियों को दावानल बनने की छूट देते हों।#दुष्टम_शरणम_क़ानूनम।।
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●संपादक●
[न्यूज़ & व्यूज़]
श्योपुर (मध्यप्रदेश)