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22 May 2024 · 1 min read

चिंगारी

ना मेरे मन की,
बात जाने ।
अब हर कोई,
मुझे ही समझाता।।

ख़ुशी से न कोई,
अब मेरा नाता।
दिल को मेरे,
मैं हूँ समझाता।।

हर कोई,
अपनी मर्जी का सुल्तान।
हर बार मुझे ही,
नीचे झुका जाता।।

जीतने निकले थे,
ज़माने को हम।
यहाँ तो घर में ही,
हर कोई मुझे हरा जाता।।

बारिश के मौसम,
को पतझड़ बना।
मन के सूखे पत्तो में,
चिंगारी सुलगा जाता।।

खुशियों भरी
बारिश की उम्मीद थी जीवन में।
हर कोई ,
सूखे की बंजर जमीन दे जाता।।

ना मेरे मन की,
बात जाने।
अब हर कोई,
मुझे ही समझाता।।

डॉ. महेश कुमावत 06 जनवरी 2024

Language: Hindi
1 Like · 103 Views
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