अदम गोंडवी को समर्पित
न ज़ुबान की वज़ह से
न अंदाज़ की वज़ह से
कुछ ख़ास हैं मेरी ग़ज़लें
इंकलाब की वज़ह से…
(१)
आख़िर कौन-सा सिकंदर
और कहां का सिकंदर
मैं तो यूनान को जानता हूं
सुकरात की वज़ह से…
(२)
तसव्वुर का जाल बुनना
दूसरों का काम होगा
मेरे शेर तो बना करते हैं
तजुर्बात की वज़ह से…
(३)
कितने हुनरमंद लोग
गुमनाम ही रह गए
अपने समाज में फैले हुए
जात-पात की वज़ह से…
(४)
लाख ख़तरों के बावजूद
मैं थामे रहा क़लम
इस देश के बदतर हो रहे
हालात की वज़ह से…
(५)
ऊंची से ऊंची ईमारत भी
महफूज़ नहीं रह सकती
ग़लत तरीक़े से रखी गई
बुनियाद की वज़ह से…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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