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20 Oct 2020 · 1 min read

चाॅंद

चाहने से भला चाॅंद कब हुस्न के जुड़े में सजता है
अबोध मन चाॅंद की परछाईं को भी अपना समझता है

शाम के मुहाने जब दिन सूरज से बिछड़ता है
चाॅंद आसमां के आंगन में सितारों संग उतरता है

इक चाॅंद टहले आंगन में इक चाॅंद पलकों पे ख्वाब बुने
इस चाॅंद के चाॅंद मारी में हर रात मेरा जरा बहकता है
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 425 Views
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