चाॅंद पे भी तो दाग है
ऐ चाॅंद,
तेरे चेहरे पर भी तो दाग है
क्यों गुमान है इतना
अपनी चाॅंदनी पर
वो भी तो आती,
एक अमावस्या की रात के बाद है।
अन्धेरी रातों की
गुमनाम गलियों में
फूलों की महक बिखेरता
आंगन में खड़ा वो चमेली का पेड़,
चमकती चाॅंदनी में दिखाता ख्वाब है,
मिटती नहीं जो यादें, रहे सपनों में आबाद है।
वो भी तो आती,
एक अमावस्या की रात के बाद है।
ऐ चाॅंद,
तेरे चेहरे पर भी तो दाग है
तेरा भी सफर है, अन्धेरों से होकर
चोटी पर पॅंहुचना है, तलहटी से होकर
तु समझ ले ऐ चाॅंद
ये चाॅंदनी भी तुझ पर सूरज की उधार है,
मत सोच के तु ही आबाद किए है रोशनी को,
ये तो सूरज की मेहरबानी पर आबाद है।
वो भी तो आती,
एक अमावस्या की रात के बाद है।
ऐ चांद,
तेरे चेहरे पर भी तो दाग है