चाह : शहीद कहलाने की
कल भगत सिंह की जीवनी पढ़ रहा था तो दिमाग में आया की आखिर कैसे कोई वतन की खातिर इतने जुल्म सह सकता है और कैसे कोई वतन की लिए अपने प्राणों तक की बाजी भी लगाने को तैयार हो सकता है।आजकल तो हम जब तक बात स्वयं से जुडी हुयी न हो तब तक हम उस मुद्दे में नही पड़ना चाहते। वाकई वो कोई आम इंसान तो नही थे।जैसे जैसे जीवनी पढ़ रहा था वेसा ही दृश्य मेरी आँखों के सामने चल रहा था।मन कर रहा था की काश मैं भी उस दौर में होता और देश के लिए कुछ कर पाता पर क्या इतना आसान था जितना पढ़ने में लग रहा था।आज के दौर में अगर हमे छोटी सी चोट भी लग जाये तो तुरन्त डॉक्टर के पास भागते है तो क्या उस समय में भगत सिंह और बाकि वतन के सुरमो ने जो असीमित जुल्म सहे वह तो कोई चमत्कारी लोग ही थे।मन कर रहा था की उन्हें सच्चे दिल से सलाम करू। जहन में आया को अगर देश के लिए कुछ करना ही है तो वो तो हम कभी भी कर सकते है इसलिए मैंने सोचा है की जब भी मुझे मौका मिलेगा तो अपने प्राणों की बाजी लगाने से भी नही कताराउंगा बस ईश्वर मेरा साहस और शक्ति बनाये रखे ।