चाह – नव परिवर्तन की
ऐसी मशाल जलाओ तुम
बुरा वक़्त है जो एक दिन आयेगा,
हौंसले को तुम्हारे जरूर डिगायेगा,
कर्तव्य पथ को प्रकाशित करे जो,
ऐसी मशाल जलाओ तुम |
नहीं आसान है जीवन पथ पर चलना,
मुश्किलें बहुत हैं ज़रा संभल कर रहना,
मंजिल तक तेरी रास्ता पहुँचे जो,
ऐसी राह एक बनाओ तुम |
इंसानों के इस जहाँ में,
काम, क्रोध, द्वेष, लोभ हैं शिखर पर,
मानवता का राग सुनाये जो,
ऐसा संगीत कोई बनाओ तुम |
हिंसा और युद्ध ने किया तबाह,
कराहती इंसानियत है जग में,
अहिंसा – प्रेम सिखलाने फिर एक बार,
ऐसी अशोक बुद्धि जगाओ तुम |
संसार है जिस नारी के दम पर,
अपमान और तिरस्कार उसी का चरम पर,
सुरक्षा और सम्मान दिलाये उसे जो,
ऐसी कोई विधि बनाओ तुम |
इतिहास की बात बहुत हुई,
वर्तमान की आधारशिला पर,
भविष्य स्वर्णिम बना सके जो,
ऐसी विचारधारा बतलाओ तुम |
ऐसा नव परिवर्तन जहाँ में लाओ तुम |
ऐसी मशाल जलाओ तुम |
लेखक – मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव
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