चाहिए हमको।
एक गजल की कोशिश
आपके नजर करता हूं ।
1222 1222 1222 1222
कहां आजाद है भारत निशानी चाहिए हमको।
दिलों में आग जिस्मो में जबानी चाहिए हमको।
यहां सहमी हुई बेटी मिलेगी हर शहर घर में।
बनी वीरांगना दिल से ,भवानी चाहिए हमको।
सिमट कर रह नहीं सकती बिलख कर रह नहीं सकती ।
जरूरत है वतन में अब सिंहानी चाहिए हमको।
रहो घूंघट तले तुम भी मगर जब भी जरूरत हो।
तेरे वक्षों में भी जागी भवानी चाहिए हमको।
वो बालक है कहो कबतक उठाएगा यूं कचड़ों को।
मिलेगी कब उसे मंजिल बतानी चाहिए हमको।
सियासत का हक़ीक़त है किसानों को कुचल डाला।
उपज हो फिर बगावत का किसानी चाहिए हमको।
सलीका भी नहीं आया वतन के इस इबादत में।
दिलों के आग से शोला जलानी चाहिए हमको।
अगर जन्में यहां बच्चा तो उसका शेर साथी हो।
जनम दे सिंह को वो ही जनानी चाहिए हमको।
लपेटे इस गगन को जो, यहां पगड़ी सरीखे वो
रगों में खौलता पानी जबानी चाहिए हमको।
सियासत के वसूलो में फरेबों का नवाबी है।
मगर पुख़्ता यहां दीपक कहानी चाहिए हमको।
©®दीपक झा रुद्रा