चाहिए राष्ट्रभाषा
पूरी करने को राष्ट्र की आशा
हर देश को चाहिए निज की एक भाषा
यह भाषा ही बुनती है तार
बाँधने को देशवासियों के मन
और भरने को उनमें झंकार
फिर सृजन कर नवीन साहित्य का
विश्व के सम्मुख खड़ी हो
निज राष्ट्र को प्रदान करती है ठोस आधार
मेरे राष्ट्र की भाषा हिंदी है
यह भारत के भाल पर सजी
सौभाग्यपूर्ण बिंदी है
संस्कृत की कोख से जन्मी
और सुगम ,मनोहारी साहित्य की जननी है
विशाल हृदय इसका
जैसे हो सम्पूर्ण सागर
जर्मन,फ्रांसीसी,,अंग्रेज़ी,अरबी,
और जाने कौन -कौन से
शब्दों से पटी है इसकी गागर
सबको कर लिया आत्मसात ऐसे
इसीके पुत्र-पुत्रियाँ हो ये सबं जैसे
विश्व भर में खूब बोली जाती है
पर नयी भारतीय पीढ़ी
इसे बोलने में आजकल लजाती है
अरे ,कौन कहता है ,
दूसरी भाषाऐं मत सीखो ?
किसने कहा अंग्रेज़ी छोड़ो
या जापानी मत बोलो ?
पर इसे संभालो ,
ये तो हमारी अपनी थाती है
आज हर ओर संरक्षण का जोर है
वृक्ष बचाओ,मिट्टी को सुरक्षा दो
हवा को प्रदूषण से निकालो
यही शोर सब ओर है
परंतु उपेक्षा के कारण
रो रहा हिन्दी का पोर पोर है
आगे बढ़ो ,पोंछो आँसू इसके
यह पहचान है हमारी
बनो संबल इसके
यह मर गई तो अनाथ हो जायेंगे
फिर यह माँ कहाँ पायेंगे
तब क्या किसी विदेशी भाषा को
भारत की राष्ट्रभाषा बनायेंगे!!!
अपर्णाथपलियाल”रानू