— चाहिए कुछ नहीं पर चाहिये सब कुछ —
जब आते हैं रिश्ते शादी के लिए
जुबान पर बड़ी मिठास होती है
देखो लो सही से फिर न कहना
बस ऐसी ऐसी बात होती है
बात जब बन जाती है , तब
दो घर के मिलने की बात होती है
लेने से क्या कभी कुछ बनता है
बड़े प्यार से यह बात होती है
आ जाता दिन जब नजदीक
खलबली हर बार होती है
पडोसी का घर भर गया देखो
क्यूं यहाँ यह बात नहीं होती है
क्या कमी थी हमारे पुत्र में
जो उनके घर यह बात न होती है
अब न मिला कुछ तो फिर
कब मिलेगा ऐसी बात तब होती है
चाहत मन में पूरी है कहने की
पर जुबान बंद क्यूं होती है
चाहिए कुछ नहीं हम को आप से
जो दोगे बेटी को ऐसी खुराफात होती है
क्या फायदा ऐसे रिश्तों का
जहाँ बात बात पर फिर ठान होती है
खुलकर क्यूं नहीं कहते सामने
बेटी दहेज़ के साथ ही तो होती है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ