चाहत
चाहत
कुछ पाने की चाहत,
अक्सर गलतियाँ करवाती है l
कभी अँधेरे में खीच ले जाती है ,
तो कभी गरत र्में गिराती है l
जब भी कुछ पाने की चाह,
हमे दूसरों पर निर्भर कराती है l
स्वाभिमान को छल्ली कर,
दिल को तार-तार कर जाती है l
चकाचौंध भरी दुनिया में
कभी घर तो कभी महँगे मोबाईल
बड़े ब्रेंड की पोशाके , गाड़ी, बंगला
को पाने की चाह !
या तो मेहनत कड़ी कराती है ,
या जुर्म के मार्ग पर चलती है l
कुछ पाने की चाह
समेट लो खुद में ही l
नहीं तो सच यह भी है ,
कि ये कई बार बीच रास्ते लाकर
ईश्वर की लाठी लगवाती है …..