चाहत
लबों पर तिश्नगी कायम रही हरदम ,
एहसास के सराबों में भटकता रहा हर कदम ,
हमराह भी हमक़दम ना रहे ,
हम-नफ़स भी हमदम ना रहे ,
ज़ख़्मे दिल लिए मुदावा ढूंढता फिरा,
नासेह ना कोई चारागर मुझे मिला ,
सहर होते ही उम्मीद सी बँध जाती रही ,
शाम होते ही तमन्ना इज़्तिराब में ढलती रही ,