चाहत
कभी बेरंग गुज़री है कभी बेज़ार गुज़री है
तेरी ही चाहतों के सिलसिलों में य़ार गुज़री है
रंग तो आसमान में भी बिखेरे थे इन्द्रधनुष ने
मेरे आँचल पे ही बस श्वेत रंग फुहार गुज़री है
कहीं पीला कहीं नीला ,रंगी रंगीन फिजाएँ हैं
फकत मेरी ही गलियों से बेरंगी बयार गुज़री है
रंगी राधा रंगी रुक्मन प्रेम रंग-रंग मोहन के मगर
कान्हा की पिचकारी हर जिगर के पार गुज़री है
कभी तो देख आकर के हमें किस हाल में हम हैं
कभी तो पूछ हमसे भी हमपर क्या य़ार गुज़री है
नीलम शर्मा