चाहत कोई बेवजह नहीं होती!
तुम्हें चाहने की, वजाह भी तो होगी!
नहीं कोई चाहत,बेवजह से है मिलती!!
खता क्या है दिल की, जरा सा बता दो!
नहीं कोई वफा ,बेवजह से है मिलती!!
तुम्हें चाहने की, वजाह भी तो होगी!
नहीं कोई चाहत, बेवजह से है मिलती!!
ये सासों की लडियां,कहती हैं क्या क्या!
सुना है नहीं क्या , सुनती हैं क्या क्या!
मेरे दिल की धड़कन, छू कर केे देखो!
नहीं कोई धड़कन,बेवजह से है बढती!!
तुम्हें चाहने की, वजाह भी तो होगी!
नहीं कोई चाहत बेवजह से है मिलती!!
भर -भर के आँखे , देखा है तुमको!
समंदर बनाकर ,इनमें डुबोया है तुमको!!
नजरें उठा कर , जरा तुम तो देखो!
नहीं कोई दरिया,बेवजह से है बनती!!
तुम्हें चाहने की, वजाह भी तो होगी!
नहीं कोई चाहत बेवजह से है मिलती!!
अजीत
कानपुरिया