चाहत के मकान में तुम रहती हो
चाहत के मकान में तुम रहती हो
दिल के दरपन में तुम फबती हो
जब पहने हीरे का हार गले में
अप्सरा हसीँ सी मुझको लगती हो
नजरें झुकी झुकी हो जब तेरी
अदा इसी में दिल मेरे खिलती हो
मुस्काँ प्रिया जो तेरे होठों पर
बगिया में फूल की तरह सजती हो
नित्य चली आती हो जब सपने में
ख्यावों सी उठ ख्यालों में नचती है