आब दाना
चाहतों को न बढ़ा यूँ,
सब्र का दामन पकड़।
बेलिबास दुनिया में आये,
बेलिबास हो रुखसती।
क्या तुझे देगा नहीं वो,
जितना होगा लाज़मी।
जो परिंदों को है देता,
आब दाना वक्त पर।
-सतीश सृजन, लखनऊ.
चाहतों को न बढ़ा यूँ,
सब्र का दामन पकड़।
बेलिबास दुनिया में आये,
बेलिबास हो रुखसती।
क्या तुझे देगा नहीं वो,
जितना होगा लाज़मी।
जो परिंदों को है देता,
आब दाना वक्त पर।
-सतीश सृजन, लखनऊ.