चाहतों के मेले
चाहतों की महफिल में,दूर तक अँधेरे हैं।
दुश्मनों के कूचे में, टूटे सपने मेरे हैं ।।
धड़कनों की डोरी से, तुमको मैंने बॉंधा था,
वे-वफा नहीं था मैं,हद से तुमको चाहा था।
तोड़ दॅूं कसमें वफा की,या अभी कायम रखॅूं मैं,
आसपास आज मेरे, बुजदिलों के घेरे हैं ।
चाहतों की महफिल में….
रव से तुमको मांगा था, रव ने ही मिलाया था,
बहके -बहके यौवन पे, छुपके प्यार आया था ।
ये गवाह अम्बर है,और ये नदियॉं हवायें,
बे-जुबान मंडप में, अजनबी से फेरे हैं।
चाहतों की महफिल में..
हसरतों ने अल-सुबह ,आग जो लगाई है,
हुस्न के शबाब पर, बे-बसी सी छाई है ।
राज-ए-दिल कहूँ किसे, धड़कनें ठहर चलीं,
जलजलों का मंजर है, गम ने साज छेड़े हैं।
चाहतों की महफिल में…
जिंदगी की राहों में, हम जो कल मिलें कभी,
हर कदम पे साथ हो, मन से मन मिलें तभी।
मैं रहॅूं या न रहॅूं ये दिल तेरा रहे मेरा
गॅूंजती शहनाईयों में, छूटे अपने डेरे हैं ।
चाहतों की महफिल में…….
–
जगदीश शर्मा “सहज”
अशोकनगर म०प्र०